Friday, January 30, 2009

बसंत









शीत
की बंद कोठरी के द्वार से
अंधेरो को उजाले में लाया है बसंत ।

महकती कलियों के लिए भोरो का ,
प्रेम संदेश लाया है बसंत .

पीले से मुख पर बसंती आभा
बिखेरता हुआ आया है बसंत .

किसानो के लिए फसलो की सोगात
लेकर आया है बसंत .

जीवन को जीवन देने ,
फ़िर से आया है बसंत .

और पढ़ते हुए बच्चो के लिए ,
देवी माँ सरस्वती का वरदान
लेकर आया है बसंत ।

Friday, January 23, 2009

गणतंत्र दिवस और आम आदमी



लो फ़िर २६ जनवरी .गणतंत्र दिवस आ गया .सारा मिडिया देशभक्ति के रस में डूब गया ,चाहे वो टेलीविजन हो अख़बार हो या फ़िर इंटर नैट हो हर जगह देश प्रेम की लहर छाई हुई है |नेता लोग अपने सफेद कपडो की सफाई और उन्हें कड़कदार बनने में लगे हुए है ,तो सड़क पर प्लास्टिक के झंडे बेचने वाले (आम दिन वो लोग भीख मागते है )एक दिन की मेहनत की कमाकर अपने को देशभक्त समझकर खुश होते है | माइकऔर लाउड स्पीकर पर गिने चुने फिल्मी देशभक्ति गीतों के कैसेट और सीडिया बजने को आतुर है की चलो हमे कम से कम साल में दो बार तो बजाया जाता है |
सरकारी स्कूल के शिक्षको को इस एक दिन के भय से अपनी नोकरी बचाने की चिंता खाए जा रही है |हर कोई अपने अपने स्वार्थ के चलते इस एक दिन को शिद्दत से याद करते है ,और २७ जनवरी को चैन की साँस लेते है|
आजकल अखबारों में क्रांतिकारियों के संस्मरण पढ़कर उनकी देश के प्रति सच्ची श्रधा देखकर उन के प्रति मै श्रधा से नत मस्तक हुँ .जिन्होंने अपना सर्वस्व त्यागकर देश को बरसों की गुलामी से आजाद कराया.

आज हर कोई के मन में ये बात चुभती है की देश भक्ति का वो जज्बा कहा गया जब महात्मा गाँधी .सुभाषचंद्र बोस शहीद भगतसिंग ,चंद्रशेखर आजाद जैसे नेताओ की एक आवाज पर देश के लिए अपने प्राण न्योच्छावर करने के लिए लोग घरो से निकल पड़ते थे
आज हमारा देशप्रेम एक दिन में ही सिमट कर रह गया है या यो कहिये एक रस्म बनकर रहा गया है |आजादी के कुछ सालो तक कुछ ठीक था ,फ़िर हर आदमी सोचने लगा हमे आजादी मिली है अब तो हम स्वतंत्र है सब कुछ करने के लिए और उसने उसे व्यक्तिगत स्वतन्त्रता मानकर मन माने ढंग से जीवन शैली अपना ली |मर्यादाए ,नैतिकता सत्य्प्रय्नता ,आचरण की पवित्रता ये सब उसके निजी सुख में आडे आने लगे |उसके अन्तर में , सत्ता करने और भोगने की सोई हुई लालसा जाग उठी और दिशाहीन होकर येन केन प्रकारेण नेता बनने के सपने देखने लगा
पार्टिया बनती गई नेता बनते गये ,एक पार्टी से अनेक राजनितिक पार्टी एक नेता से अनेक राज करने वाले नेता इसी तरह अपने सगे सब्न्धियो का दायरा बढाते गये ||सगे सबंधी अगर उनके खिलाफ आवाज उठाते तो उनके ऊपर भी गाज गिरती इसलिए वे भी सत्ता के सुख का चरनामृत ले तृप्त होते रहे और अपने दिलो में सुख साधनों से वंचित होने का भय लेकरजीते हुए देशप्रेम को रस्म बनाते रहे |दूसरी तरफ़ जो लोग इन राजनितिक पार्टी अधिकारिक लोगो की पार्टी में शामिल नही हो हो सके वो गुरुओ (तथाकथित )की अलग अलग टोलियों में शामिल हो गये और अपने काम उनके द्वारा निकलवाकर हाथ जोड़कर प्रवचन सुनने और कीर्तन करने लगे |
और आम जनता अपने सीने में देशप्रेम का जज्बा लिए कर्म को अपना सेतु मानकर मौन किंकर्तव्य वि मूढ़ सी अनवरत चलती जा रही है |
रास्ते उनके लिए रुके है ,
जो चलना जानते है |
जो सीना तानकर चलते है ,
वृक्ष उनके लिए तने है |
जय भारत




Wednesday, January 21, 2009

विनती










लताओं में ,कुंजो में .गलियों में ,
फूलो में ,झूलो में .यमुना की लहरों में
मुरली की मोहक तान छोड़ गये तुम
राधा को गोपियों को ,ग्वालो को
नन्द बाबा ,माता यशोदा को
कैसी टीस दे गये तुम
संहारक .रक्षक राजा ओर गीता के उपदेशक बनकर
संसार में महान बन गये तुम
माखन की स्निग्धता ,कोमलता तुम बिन नही
मिश्री की मिठास तुम बिन नही
आओ कृष्ण एक बार फ़िर आओ
पुनः स्रष्टि को जीवंत बना जाओ
प्रीत की पुकार सुन लो ,
कठोर न बनो श्याम ,ये तुम्हारा स्वभाव नही ,
तुम पर कोई आक्षेप करे
ये मुझे मंजूर नही
आओ कान्हा पुनः
इस जग को सुंदर बना जाओ

(इमेज सोर्स - कृष्ण.कॉम)

Sunday, January 11, 2009

द्वंद

शरीर और जीव का द्वंद अविराम चलता ही रहता है ,यह द्वंद हम पर कितना हावी है .हम शरीर के इतर कुछ सोच ही नही पाते है हमारी भावनाओ के नियंत्रण में आकर रह गया है ,जीव इससे परे सोचता है| शारीरिक भावनाए सामाजिक रिश्तो पर आधारित होती है,रिश्ते मान्यताओ पर आधारित होते है मान्यताये हमने तुमने ही गढ़ी है फ़िर जीव तो कोई बंधन में नही है उसे तो बाहर आना ही होगा ,इन सबसे और इस द्वंद से उबरना ही होगा .कुछ सालो पहले स्वामी विवेकानंद इस द्वंद से बाहर आए थे ,और उन्होंने अपने गुरु श्री रामकृष्ण 'परमहंस 'की 'जीव सेवा 'इस वाणीको क्रियान्वित कर सारे विश्व को आलोकित किया था,जो आज भी उतनी ही प्रासंगिक है और आलोकित हो रही है ।
शोभना चौरे

भारत बनाम अमेरिका

मै कभी अमेरिका नही गई, न ही मुझे अंग्रेजी आती है ,लेकिन अमेरिका के बारे में अपने रिश्तेदारों ,पडोसियों और अखबारों के माध्यम और हाँ फिल्मो में अमरीकी स्थलों की शूटिंग देखकर वहा की काफी जानकारी रखती हुँ ।
अमेरिका में इतनी सफाई है की वहा महीनों कपडे न धोओं तब भी मालूमही नही पड़ता की ये कपड़े बिना बिना धुले
है .यह कोई पैदल ही नही चलता अगर एक हरी मिर्ची भी लाना हो तो कार से जाना पड़ता है ,जबकि हमारे इंडिया
(भारत )में घर के सामने बिना पैदल चले ही ठेले पर ५रुप्ये में महीने भर की हरी मिर्च मिल जाती है .अमरीकी सड़के, अमरीकी अमरीकी शिष्टता (थेंक्यु ,सारी )अमरीकी लोग ,अमरीकी इंडियन लोग वहा की बड़ाई करते नही थकते, अपने देश में गली गली पान की पीक थूकते लोग अचानक वंहा कैसे सभ्य हो जाते हैबहुत सोचने पर भी मै कभी जान नही पाई .मेरे रिश्तेदार जब भी कभी अमेरिका से आते सभी तरह की चर्चाये होती ,मै उन्हें भारत की की समस्याए बतातीयंहा की सरकार की भर्ष्टाचार ki खबर देती तो वे लोग ओके ओके कहकर सर हिलाकर मेरी बात सुनते तब मुझे लगने लगता वे मेरी बात बात कितने ध्यान से सुनकर उनपर व्यथित होते मै आशावादी हो जाती की शायद भारत की समस्याए सुनकर यंहा की समस्यों का हल चुटकी में निकाल लेगे ,क्योकि उनके रहन सहन में समर्धि की झलक होती और मेरी ये धारणा है की प्रत्येकसमर्ध व्यक्ति हमेशा दुसरो की मदद करता है और फ़िर इन्हे तो अपने देश का अपनों का कितना दर्द है जो हर साल इंडिया में आकर अपने पुराने कपड़े जूते जर्किन और अन्य सामान अपने रिश्तेदारों में शान से बाँट जाते ।
अचानक मै उनसे पूछ बैठी ,अमेरिका में नेता लोग ,अभिनेता लोग सरकारी अधिकारी कितने इमानदार होते है न?कभी भी मने नही सुना की वहा कोई इस तरह की चोरी करता है नही व् ह कभी छापे पड़ते है ,न ही पोलिस अधिकारी कोई भ्रष्टाचार करते है कितना अच्छा है न,हमारे भारत में उनसे ये सब चीजे क्यो नही सीखते ?
तब मेरे भाई ने तपाक से उत्तर दिया दीदी वंहा पर कोई ऐसी छोटी मोटी चोरियों धोखाधादियो में विश्वास नही करता वहा तो बडे पैमाने पर हेरा फेरी स्केंडल होते है ,तब मै हतप्रभ थी और मेरी मोटी बुधि में भी ये बात समझ नही

आई .और बात आई गई हो गई ,आज जब टी वि पर पेपर में खबरों में 'सत्यम 'ghotala पढा सुना तो मुझे विश्वास हो गया की हम इंडियन (भारतीय नही)बिल्कुल अमेरिकी नक्शे कदम पर चल कर दुसरो को गरीब बनाकर ख़ुद अमीरी की हवस से ओतप्रोत होकर पूंजीवाद को बढावा देकर समाजवाद को बौना बनाने में माहिर होते जा रहे है ।
पवित्रता हम भारतीयों के आचरण में हुआ करती थी आज वो लापता होती जा रही है |

Thursday, January 08, 2009

खिड़की



सपनो और अपनों की कोई
परिभाषा नही होती ,
जेसे हवा सिर्फ़ महसूस होती है
ठीक
अपनों का व्यवहार सिर्फ़
महसूस किया जाता है
ठंडी हवा ,गर्म हवा
महसूस होते ही
हम अपने घर की खिड़की बंद कर देते है
कितु रिश्तो के गर्म और ठंडे
होने पर अपना सयम खो देते है
हवा और रिश्ते हमारे प्राण है ,
फ़िर ये खिड़की क्यो ?

Thursday, January 01, 2009

नव वर्ष का आगमन

कंटीली झाडियों सा वक्त,

पथरीले रस्ते सा वक्त ,
सूर्यास्त और पतझड़ सा वक्त ,
फिरकनी सा घुमाता हुआ वक्त ,
खुशी में भी टीस देता हुआ वक्त
अपनों को अपने से तोड़ता वक्त ,
गीली टहनी सा झुका हुआ वक्त
इस बेरहम वक्त से संघर्ष करता हुआ ,
गुलाब की कलियों से महकता सूर्योदय
का समय
सीधी सी पगडण्डी के किनारों पर
सजीला बहारो का समय
शांत झील सा सुंदर समय
लकड़ी के गठ्हर सा दुसरोको ,
को अपने से जोड़ता सुखद समय
इसी मेहरबान समय के साथ
नव वर्ष की बधाई एवम शुभकामनाये .