Thursday, July 23, 2020

पचपन पार की औरते

नारी दिवस पर 
💐💐💐💐

55 पार की औरते

55 के पार की औरतें
शीशे में अपना अक्स
देखने में सकुचाती है
अपना आत्म विश्वास
खोने लगती है
जब
जिसकी अर्धांगिनी होती है
जिनको जन्म दिया,
पालन किया वो 
हर बात में उसे
टोका करते है
तब,

मैंने देखा है 
सूजे हुए पाँव लेकर
पोर पोर टिसते 
हुए अंगो के जोड़,
तब भी घरेलू इलाज
का हवाला देकर
डॉ के पास नही जाती
क्योंकि उसे मालूम है
ये उसके बजट के बाहर है
पूरा जीवन सर्फ साबुन
किफायत से उपयोग
करती रही
आज उनको पानी में
 घुलते देख
खुद भी घुलती है।
अपनी बची हुई
जिंदगी में,

हाँ ये 
सुख की बात है
 55 पार की ओरतें
जो
रिटायर होने वाली है
अपनी नौकरी से
उनके मुख पर
आभा है,
क्योकि वो हमेशा
चेकअप करवाती 
रही अपना
उसकी पेशानी
पर बल नही
क्योंकि
उसे साबुन सर्फ
में किफ़ायत
का अनुभव नही?
-शोभना चौरे

नदी

नदी
एक नदी थी अपनी,
कलकल बहती
लहराती ,इठलाती
दर्पण सी पारदर्शी
प्यास बुझाती,
भूख मिटाती
नाव  को सहारा बनाती
किनारों के मिलने का ,
न जाने !
कब ?
वो सरकारी हो गई
पहले रेत निकाली गई
फिर बिजली के नाम
सूखा दी गई
फिर दिखावे में
भर दी गई
धर्म के नाम पर
पूजी भी गई
और भर गई 
जल से नहीं!
व्यापार के
अवशेषों से
अब न प्यास
बुझती नभूख मिटती
कभी सबकी होती,
नदी
आज चंद
निजी हाथों में
सौंप दी गई।
💐💐💐💐
शोभना चौरे