मेरे पति देव कहते है की तुम्हारे सोचने से दुनिया थोडी न बदल जावेगी ?
पर क्या करू ?जब उनके साथ स्कूटर पर बैठ कर जाती हूँ ब्रेक ठीक करवाने रुकते है और एक सात या आठ साल का बच्चा आकर खुशी खुशी आकर ब्रेक ठीक कर देता है और हथेली पर रखे सिक्के को देखकर खुश होता है और में सोचने लगती हूँ ये बच्चा स्कूल जाता है कि नही?
मेरे पडोस में एक आठ साल की बच्ची दो साल के बच्चे को सुबह आठ बजे से लेकर पॉँच बजे तक बच्चे को खुशी खुशी सभालती है और खुशी खुशी ५०० का नोट महीने के आखिर में घर ले जाती है तो मै उसकी पढ़ाई के बारे में सोचने लगती हूँ |
पंकज सुबीर जी कि " बेजोड़ " कहानी" ईस्ट इंडिया" की तर्ज पर चायनीज सामान के बल पर चीन हमारे घर में पाव पसार रहा है और हम खुशी खुशी हमारे घर, त्योहारों पर रोशन कर रहे है तो मै सिर्फ़ सोचती हूँ कि ये रौशनी क्या हमारी सच्ची खुशी है?
अपनी छटवीसंतान को अपने गर्भ में (पॉँच बेटियों के बाद बेटा ही होगा इसी आस में )लिए मेरी (घमंड )कामवाली बाई महीने भर बर्तन मांजने के बाद २०० रूपये खुशी खुशी ले जाती है तब मै सोचती हूँ परिवार नियोजन कहाँ तक सफल हुआ है ?
नित नये नेताओ के द्वारा किए गये घोटाले ,विधान सभा में शपथ लेते और उनके माइक हटाते विधायको कि खबरों को दिखाने वाले टी .वि .चैनल शाम को मौज मस्ती करने वाले खोजी पत्रकार खुशी खुशी ऐशो आराम पा जाए ?तो मै सोचती हूँ क्या ?भागवत गीता सिर्फ़ उपहार देने के लिए ही छपती है |
८२ डिब्बो कि रेलगाडी वाला केक जब अडवानी जी के लिए बनाया जाता है , और अपने जन्मदिन पर जब ख़ुशी ख़ुशी केक काटते है और अपने संघ कि विचारधारा वाले लोगो को खिलाते है तो मै सोचने लगती हूँ कि घर घर हिदू धर्म का प्रचार करने वाली विचारधारा विदेशी परम्परा का मोह क्यो ? छोड़ नही पाती |
मुझे सोचता देखकर शायद आप भी कह सकते है !बहुत हो गया अब सोचना! कुछ करो भी ? अब आप ही बताये मै क्या करू?
Tuesday, November 10, 2009
Saturday, November 07, 2009
गुनगुनी धुप
गुलाबी गुलाबी ठण्ड शुरू
हो गई है हाथ खोलने के दिन गये
हाथ बांधने के दिन आगये |पॉँच बजते ही सूरज देवत अपना रूप समेटने लगते है , मजदूरों के जलते चूल्हे साँझ की झुरमुट में सूरज की जगह ले लेते है |और तभी मन में कुछ ख्याल आने लगते है |
अब आई है ठण्ड
अपने पंख फैलाकर
घर की चोखटे सजी है
धुप के टुकडो से |
दादी बैठी खटिया पर ,
मालिश का तेल लेकर |
दादाजी कम्बल ओढे बैठे है ,
टी वी के सामने |
नन्हा पानी को देखकर ,
सर पर रजाई ओढ़कर
फ़िर सो गया |
पापा टी वी के सामने बैठकर ,
हाथ में पेपर लेकर
चाय पर चाय गुड़क रहे है |
दीदी फटाफट तेयार हो गई है
कॉलेज जाने के लिए
माँ फिरकनी सी
कभी पराठे सेंकती ,कभी हलवा बनाती |
तरस गई है
, कुनकुनी धुप के लिए
मै कब तक बचूंगा ,
पढाई करने के बहाने बैठा रहकर,
नहाकर नही गया तो ,
क्लास के बाहर कर दिया जाऊंगा,
तब बरामदे से फ़िर ठंडी हवा
मेरे कानो को चूमेगी,
इससे अच्छा है
मै इस ठण्ड का स्वागत
कर लूँ
उसके पंखो को छूकर \
हो गई है हाथ खोलने के दिन गये
हाथ बांधने के दिन आगये |पॉँच बजते ही सूरज देवत अपना रूप समेटने लगते है , मजदूरों के जलते चूल्हे साँझ की झुरमुट में सूरज की जगह ले लेते है |और तभी मन में कुछ ख्याल आने लगते है |
अब आई है ठण्ड
अपने पंख फैलाकर
घर की चोखटे सजी है
धुप के टुकडो से |
दादी बैठी खटिया पर ,
मालिश का तेल लेकर |
दादाजी कम्बल ओढे बैठे है ,
टी वी के सामने |
नन्हा पानी को देखकर ,
सर पर रजाई ओढ़कर
फ़िर सो गया |
पापा टी वी के सामने बैठकर ,
हाथ में पेपर लेकर
चाय पर चाय गुड़क रहे है |
दीदी फटाफट तेयार हो गई है
कॉलेज जाने के लिए
माँ फिरकनी सी
कभी पराठे सेंकती ,कभी हलवा बनाती |
तरस गई है
, कुनकुनी धुप के लिए
मै कब तक बचूंगा ,
पढाई करने के बहाने बैठा रहकर,
नहाकर नही गया तो ,
क्लास के बाहर कर दिया जाऊंगा,
तब बरामदे से फ़िर ठंडी हवा
मेरे कानो को चूमेगी,
इससे अच्छा है
मै इस ठण्ड का स्वागत
कर लूँ
उसके पंखो को छूकर \
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