Thursday, April 21, 2011

"समझौता "

आज हर तरफ अन्ना हजारे जी की चर्चा है और उनकी तुलना गांधीजी से की जाने लगी है |हजारे जी में हम सब गांधीजी ढूंढने में लगे है |पता नही ?क्यों ?
कुछ सालो पहले मैंने एक कविता लिखी थी इन्ही भावो को लेकर |
कितनी प्रासंगिक है आज ?

"समझोता "

मेरे घर के आसपास
जंगली घास का घना जंगल बस गया है |
मै इंतजार में हुँ ,
कोई इस जंगल को छांट दे ,
मै अपने मिलने वालो से हमेशा,
इसी विषय पर बहस करता,
कभी नगर निगम को दोषी ठहराता,
कभी सुझाव पेटी में शिकायत डालता,
और लोगो को अपने,
जागरूक नागरिक होने का अहसास दिलाता|
इस दौरान जंगल और बढ़ता जाता,
उसके साथ ही जानवरों का डेरा भी भी जमता गया|
गंदगी और बढ़ती गई
फ़िर मै,
जानवरों को दोषी ठहराता
पत्र सम्पादक के नाम पत्र लिखकर
पडोसियों पर फब्तिया कसता
[आज मै इंतजार में हूँ ]
शायद 'बापू'फ़िर से जन्म ले ले
और ये जंगल काटने का काम अपने हाथ में ले ले|
ताकि मै उनपर एक किताब लिख सकू
किताब की रायल्टी से मै
मेरे " नौनिहालों " का घर 'बना दू
उस घर के आसपास फ़िर जंगल बस गया
किंतु
मेरे बच्चो ने कोई एक्शन नही लिया
उन्होंने उस जंगल को ,
तुंरत 'चिडिया घर 'में तब्दील कर दिया
और मै आज भी शाल ओढ़कर सुबह की सैर को ,
जाता हूँ,
'चिडिया घर 'को भावना शून्य निहारकर
पुनः किताब लिखने बैठ जाता हूँ
क्योकि मै एक लेखक हूँ|




Sunday, April 17, 2011

कुछ अनकही .....

१.

तुम
हमेशा से
कल्पनाओ में,
कल्पनाओ के दुर्ग बनाती रही
भावनाओ से ,सवेदनाओ से ,
अपनेपन के मेल से
तुम्हारे द्वारा निर्मित
इस दुर्ग को कोई जान पाया
तुमने इसे मूर्त रूप
देकर भी अभेध्य ही
रखा !
तुम जानती थी
इस दुर्ग के द्वार
खुलते ही
तुम्हारे हाथ क्या
आयेगा
सिर्फ और सिर्फ चिंगारी |


2.
जाने क्यों ?
सवेदनाये
कागजी होकर रह गई है

जाने क्यो?
सवेदनाये
पानी के बुलबुले
की तरह हो कर रह गई है
जाने क्यो ?
सवेदनाये
बंद पानी की बोतल की खाली बोतल की तरह
हलकी होकर रह गई है
जाने क्यों ?
सवेंदनाये
आभासी होकर रह गई है |
अट्टालिकाओ के सूनेपन में
सुनामी के गूंजते सतत से शोर में
शहरों के रूखेपन में
रिश्तो के बेगानेपन में
भीड़ के अकेलेपन में
कही गुम होकर रह गई है
क्या सवेदनाये ?





Monday, April 11, 2011

दीदी कन्या जिमा दो

पिछले साल अष्टमी पर मैंने यः पोस्ट लिखी थी | जो मेरा अनुभव था आज इसकी कितनी प्रासंगिकता है ?
कृपया अपने अमूल्य विचारो से जरुर अवगत कराये |




आज सुबह से जिससे भी फोन पर बात कि वो इस समय व्यस्त थी |हलवा, पूड़ी ,खीर चने बनाने में व्यस्त थी |आज अष्टमी है देवी के पूजन का अत्यंत पवित्र दिन और आज कन्या के के रूप में साक्षात् देवीका ही पूजन विधान बताते है ,हमारे ज्योतिषी या हमारे पारिवारिक पंडित |बहुत सालो पहले कही -कही ही कन्याओं को जिमाने का प्रचलन था पर जैसे जैसे एक प्रदेश से दुसरे प्रदेशो में जाना आना बढ़ा अपने समाज के आलावा दूसरे समाज से सम्पर्क बढ़ा हम दूसरो के रीती रिवाज अपनी सुविधा और रूचि के अनुसार पालने लगे |और आज प्राय हर घर में अष्टमी और नवमी को बड़ी श्रधा के साथ उपहार के साथ कन्याओं को भोजन कराया जाता है |अब हर कालोनी में इतनी लडकिया तो मिल नहीं पाती इसलिए घर में काम करने वाली बाई को कहकर पूरी कन्याये मिल पाती है |मेरी कालोनी में मुश्किल से सिर्फ दो कन्या है |मेरे अड़ोसी पड़ोसी महाराष्ट्र और उड़ीसा के है वो लोग तो कन्या नही जिमाते | और मै ठहरी थोड़ी आलसी और नास्तिक ?
तो सिर्फ शारदीय नवरात्री में ही कन्या जिमाती हूँ |वो भी बड़ी मुश्किल से कन्या जुटा पाती हूँ |
और जब आज सबके घर कन्या भोजन कि बात सुनी तो मुझे अपने आप पर थोड़ी खीज होने लगी और एक तरह से ग्लानि भी हुई ,टी.वि के कार्यक्रम जिनमे कन्याओ को जिमाने का महत्व बताया जा रहा था तो लगा मेरा जीवन व्यर्थ ही गया |
इस तरह सोचते सोचते खाना खा लिया अपने को कोसते कोसते ||बस खाना खाकर उठी ही थी कि दरवाजे कि घंटी बजी |अमूमन इस समय कोई नहीं आता कभी कभार पोस्ट मेन घटी बजा देता था जबसे उसे कहा है- भैया घंटी मत बजाया करो क्योकि सिर्फ क्रेडिट कार्ड के विवरण और बैंक के स्टेटमेंट ही होते है उसके लिए क्यों दोपहर कि नींद ख़राब कि जाय |तब से वो भी गेट में से डाक खिसकाकर चल देता है |खैर !जैसे ही दरवाजा खोला तो देखा सात कन्याये ,जिनके हाथ में छोटे छोटे पर्स ,भरी हुई प्लास्टिक कि थैलिया थी |माथे पर ताजा ताजा कुंकू लगा हुआ अपनी उम्र के हिसाब से सबके घुटनों से नीचे लटकते हुए कपडे थे किसी कि बाहं खिसक रही तो कोई अपने स्कर्ट को बार बार ऊपर खीच रही थी |
मुझे देखते ही बोली -कन्या को जिमा दो !मुझे ज्यादा कुछ समझ नहीं आया फिर दोबारा वही वाक्य उन्होंने दोहराया
तब मुझे समझ आया |कन्या जीमना चाहती है ?मै मन ही मन सोचने लगी इन्हें क्या खिलाऊ ?क्योकि खाना तो हम खा ही चुके थे और उतना ही बनाते है |और कितना ही महत्व हो आज कन्या जिमाने का ?मुझमे इतनी तत्परता नहीं थी कि
मै सबके लिए खाना बना पाऊ ?मुझे सोच में पड़ते देख फिर से सारी एक साथ बोल पड़ी -दीदी !कन्या जिमा दो ?मानो कह रही हो ये कैसा घर है ?यहाँ कन्या नहीं जिमाते ?अब घर आई कन्याओं को खाली हाथ जाने देने का भी मन नही हो रहा था |पैसे देना भी सिधान्त के खिलाफ |
अच्छा बैठो- कहकर कुछ लाने के इरादे से मै घर के अन्दर गई उन्हें आँगन में बैठाकर ,वो व्यवस्थित बैठ गई गोल घेरे में मानो उन्हें ट्रेनिग दी गई हो |मै संतरे लेकर आई क्योकि मेरे पास और ज्यादा मात्रा में कुछ खाने वाली वस्तु नहीं थी |
बिना टीका लगाये उन्हें दे दिए -वे मुझे आश्चर्य से देखने देखने लगी |मै भी उनसे पूछताछ करने लगी ?स्कूल जाती हो?
सबने सर हिलाकर हाँ में जवाब दिया |मैंने फिर पूछा ?
कितने घर भोजन किया ?
आठ घर |आपका नोवां घर है |फिर फटाफट उठकर ठन्डे संतरोंको गाल पर लगा कर अपनी बातो में मशगूल हो गई |
मै
पूछती ही रह गई आज क्या छुट्टी है स्कूल कि ?पर वो तो सब दरवाजे से बाहर |
अब
एक संतरे में कितना पूछा जा सकता है ?
शायद मै तुरंत फोटो ले लेती तो आप सबको यकीन दिला देती कि मैंने भी कन्या जिमा दी और अपने आपको तसल्ली भी |

Tuesday, April 05, 2011

गणगौर की बिदाई ,गणगौर गीत भाग 2

गणगौर की बिदाई परसों है अभी से बिदाई के क्षणों की कल्पना कर सभी लोग भावनाओ में बह रहे है किन्तु अगले साल फिर नै उमंगो के साथ गणगौर को घर लाने की आकांक्षा में गणगौर की विदाई की तैयारी शुरू हो गई है लापसी ,दही भात , मीठा इमली का पानी ,पूड़ी मेथी दाने का साग ,और पूरण पोली, पीली चुनरी , साफा
सब कुछ है तैयार |



रणुबाई
के श्रंगार का वर्णन और मायके से विदाई



|

अरघ देने के लिए कन्याओ द्वारा लाये गये पूल और पत्तिया पाती खेलना कहते है |
मौली राजा (जब सारी टोकरिया भर जाती है और जो कस्तूरी और गेहू बच  जाते है उन्हें एक स्थान पर रखकर सींचा जाता है )




बह सामूहिक पूजा के बाद गाँव कि सारी महिलाये अपने दिन भर के खेती के काम निबटाती है क्योकि यह समय गेंहू कि कटाई का होता है |किसी के खेत में कटाई हो रही है तो किसी के गेहू खलिहान में रखे जा रहे है |कड़ी मेहनत के बावजूद
रात को बाड़ी जहाँ जवारे बोये जाते है पूरे गाँव कि एक ही बाड़ी होती है वहां आकार गणगौर के गीत ,सामूहिक नृत्य
बिना कोई खर्च के, बिना कोई तामझाम के देवी के गीत जिसमे श्रंगार ,दैनिक जीवन के कार्य का वर्णन होता है कुछ पारम्परिक गीत जो सदियों से गाये जाते है ,कुछ और मनोरंजन के लिए तुकबंदी कर के रचे जाते है और पीढ़ी दर पीढ़ी चलते रहते है |ऐसा ही ये एक श्रंगार गीत जिसमे रणुबाई चाँद तारो। सूरज से अपने श्रंगार के लिए उनके गुणों का वर्णन कर अपने धनियेर (पति ) से उनकी मांग करती है |
सिर्फ तालियों कि ताल और लय पर अपना सारी भक्ति और उत्साह देखते ही बनता है |



शुक्र को तारो रे ईश्वर उंगी रह्यो |
कि
तेकी मख टिकी घड़ाव ||
अर्थ
-एक दिन रनु अपने पति से हट पकड जाती और कहती है -हे पतिदेव !वः आकाश में सबसे तेजस्वी शुक्र का तारा चमक रहा है ?उसकी मुझे बिंदी घडवा दो |
ध्रुव कि बदलाई रे ईश्वर तुली रही
तेकी मख तबोल रंगाव \
अर्थ
-और यह जो ध्रुव कि ओर (उत्तर में )बरसने योग्य बदली छाई हुई है उसकी मुझे चुनर रंगवा दो |
सरग कि बिजलई रे ईश्वर चमकी रही
तेकी मख मगजी लगाव
अर्थ -और सुनो स्वर्ग में कडकने वाली बिजली कि उसमे मगजी लगवा देना |
नव लाख तारा ,रे ईश्वर चमकी रह्य
तेकी मख अंगिया सिलाओ
चाँद
और सूरज रे ईश्वर चमकी रह्या |
कि तेखी मख बदन घड़ाव
अर्थ -साथ ही आकाश में चमकने वाले लाखों तारो कि मुझे कंचुकी सिलवाओ जिसके अग्र भाग में चाँद और सूरज जड़े हो| बासुकी नाग रे ईश्वर देखि रह्यो
कि तेकी मख येणी गुन्थाव
बड़ी
हट वालाई रे गोरल -गोरड़ी
अर्थ
-हे पतिदेव !जो ,वो जो इठलाता हुआ काले वर्ण का वासुकी नाग दिख रहा है , उसकी मुझे वेणी गुथवा दो | इस पर ,मुस्कुराते हुए उसके पति कहते है कि - "हे गोरवर्णरनु !तू बड़ी हट वाली है |" इस तरह अनेक गीत गाये जाते है और महिलाये अपने समर्द्ध परिवार कि कामना करती हुई रनु बाई कि बिदाई कि तैयारी करती है |क़ल गणगौर कि बिदाई का दिन है |
गणगौर देवी कि आराधना का पर्व है बेटी को ही देवी रूप में पूजते है और बेटी जब ९ दिन मायके रहकर जाती है तो उसका ससुराल जाने का मन नही है|अपने पिता से हठ करती है पिताजी आपके बाग में आम और इमली है मै सखियों के संग खाना और बाग में खेलना चाहती हूँ अभी मुझे ससुराल मत भेजो |,पिताजी कहते है -बेटी तुम्हारे ससुर ,जेठ ,देवर काले सफेद और घोड़े पार लेने आये थे तब उन्हें मैंने आदरपूर्वक लौटा दिया है पर ये lजो कुवंर लाडला अपनी छैल बछेरी लेकर आया है वो तुम्हे साथ लिए बिना नहीं जायेगा |
समझा बुझाकर विदा देते है
और साथ ही उपदेश भी देते है |माँ का उपदेश जहन ममता से भीगा होता है ,वहां पिता का उपदेश भी प्यार और गांभीर्य से खाली नहीं होता है |गीत का भावार्थ इस तरह है -बेटी जब अपनी सखियों। के साथ खेलने कि जिद करती है तो पिता समझाते है |बेटी !तुम खेलने के लिए जरुर जाओ पार स्रष्टी रूपी लम्बा बाजार देखकर दौड़ कर नहीं चलना क्योकि उसमे उलझकर गिरने का भय रहता है |पराये पुरुष से कभी हंस कर बात मत करना |कही पानी देख कर ही वस्त्र धोने नहीं लगना , क्योकि इससे साध्य के लिए ही साधन का उपयोग करने कि द्रढ़ता का लोप हो जाता है |कर्ण वस्त्र धोने के लिए पानी है ,पानी के लिए वस्त्र धोना नहीं |
गीत
पिताजी कि गोद बठी रनुबाई बिनय |
कहो तो पिताजी हम रमवा हो जावा
जावो बेटी रनुबाई रमवा जाओ
लंबो बाजार देखि दौड़ी मत चलजो
उच्चो व्ट्लो देखि जाई मत बठ्जो
परायो
पुरुष देखि हंसी मत बोलजो
नीर देखि चीर मत धोवजो
पाठो देखि बेटी ,आड़ी मत घसजो
परायो बालो देखि हाय मत करजो
संपत
देखि बेटी चढ़ी मत चलजो
विपद देखि बेटी रडी मत बठ्जो
जाओ
बेटी राज करजो
इस तरह रणु बाई अपने लश्कर के साथ ९ दिन तक अपने मायके में रहती है और अपने भक्तो पर आशीष कि वर्षा कर विदा लेती है सारे गावं कि विपदाओं से रक्षा करती है और ढोल बाजे के साथ लहलहाते जवारो का बहती नदी में विसर्जन कर दिया जाता है और अगली चैत्र में फिर से आने का भावपूर्ण निमंत्रण दिया जाता है |
देवी गणगौर कि भावपूर्ण बिदाई |


 
बिदाई के पहले ज्वारो से गले मिलना हे देवी हमसे कुछ भूल हो तो क्षमा करे और और आपदाओ से रक्षा करे |