कुछ सालो पहले मैंने एक कविता लिखी थी इन्ही भावो को लेकर |
कितनी प्रासंगिक है आज ?
"समझोता "
मेरे घर के आसपास
जंगली घास का घना जंगल बस गया है |
मै इंतजार में हुँ ,
कोई इस जंगल को छांट दे ,
मै अपने मिलने वालो से हमेशा,
इसी विषय पर बहस करता,
कभी नगर निगम को दोषी ठहराता,
कभी सुझाव पेटी में शिकायत डालता,
और लोगो को अपने,
जागरूक नागरिक होने का अहसास दिलाता|
इस दौरान जंगल और बढ़ता जाता,
उसके साथ ही जानवरों का डेरा भी भी जमता गया|
गंदगी और बढ़ती गई
फ़िर मै,
जानवरों को दोषी ठहराता
पत्र सम्पादक के नाम पत्र लिखकर
पडोसियों पर फब्तिया कसता
[आज मै इंतजार में हूँ ]
शायद 'बापू'फ़िर से जन्म ले ले
और ये जंगल काटने का काम अपने हाथ में ले ले|
ताकि मै उनपर एक किताब लिख सकू
किताब की रायल्टी से मै
मेरे " नौनिहालों " का घर 'बना दू
उस घर के आसपास फ़िर जंगल बस गया
किंतु
मेरे बच्चो ने कोई एक्शन नही लिया
उन्होंने उस जंगल को ,
तुंरत 'चिडिया घर 'में तब्दील कर दिया
और मै आज भी शाल ओढ़कर सुबह की सैर को ,
जाता हूँ,
'चिडिया घर 'को भावना शून्य निहारकर
पुनः किताब लिखने बैठ जाता हूँ
क्योकि मै एक लेखक हूँ|
23 टिप्पणियाँ:
वास्तव में अण्णा को ये करना चाहिये, अण्णा को वो करना चाहिये के विचार मन में आते हैं। पर खुद हों तो क्या करेंगे, यह कोई स्पष्ट रूप रेखा मन में नहीं बनती।
हम आर्मचेयर बुद्धिजीवी!
यह कविता उन लोगों (हम सब)को प्रेरित करती है कि सिर्फ़ कहने से नहीं कुछ करने से काम बनेगा।
एकदम सच्ची बात की है आपने ..हमें दूसरे की तरफ देखने की आदत है.और खुद से निगाह फेरने की.
वाह जी बहुत सुंदर व्यंग किया आप ने , हम हमेशा दुसरो को देखते हे, खुद बस फ़ल खाना चाहते हे, बहुत सुंदर धन्यवाद
अच्छा कटाक्ष किया है....लिखना...कहना...उपदेश देना बहुत आसान है.....पर खुद किसी काम को अंजाम देना बहुत मुश्किल.
gahri vedna
सुंदर बात कही आपने ..... सिर्फ बातों से कुछ नहीं होगा....
अच्छे है आपके विचार, ओरो के ब्लॉग को follow करके या कमेन्ट देकर उनका होसला बढाए ....
लेखक तो लिख ही सकता है।
शोभना दी! बहुत सटीक... एसी कमरे में बंद होकर पसीने पर भाषण देना बहुत आसान है.. और वो भी तब जब पसीना बहाने वाला कोई और हो..
खरपतवार है, दूसरा कोई काट दे और हम कष्ट उठाए बगैर खुश हों लें. बस यही सोच तो व्यापक पैमाने पर चलती चली जा रही है । आभार...
आज के संदर्भ मे भी उतनी ही सटीक ……………सही कह रही है आप्।
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"Charity begins from home"
जब तक प्रत्येक इकाई इमानदार नहीं होगी , तब तक भ्रष्टाचार नहीं जाएगा । किसी गांधी के आने आ इंतज़ार क्यूँ ? खुद में एक गांधी की तलाश क्यूँ नहीं ?
सार्थक एवं सामयिक रचना।
आभार।
.
चिडिया घर 'को भावना शून्य निहारकर
पुनः किताब लिखने बैठ जाता हूँ
क्योकि मै एक लेखक हूँ|
manoj ji ki baat sahi hai ,bahut sundar
बहुत सुन्दर और सटीक रचना!
आज के यथार्थ और अस्तित्ववाद का बहुत सटीक चित्रण...बहुत ही गहरे भाव....
आपकी यह कविता सदा प्रासंगिक रहेगी..
हार्दिक बधाई !
प्रासंगिक और प्रभावी ....दोनो ही है ...आभार !
sach hai adhiktar logon ka maanas aisa hi hota hai ... insan bhiru hi rahta hai ...
चिडिया घर 'को भावना शून्य निहारकर
पुनः किताब लिखने बैठ जाता हूँ
क्योकि मै एक लेखक हूँ|
बहुत प्रभावशाली रचना...
jabardast vyangy. maine pahli baar apki lekhni se aisi rachna padhi. ek dam jabardat. ab lekhak k bhi kuchh karne ki baari hai.
सटीक लेखन ...स्वयं कोई कुछ नहीं करना चाहता ...जब तक हर व्यक्ति स्वयं को नहीं सुधरेगा समाज कैसे सुधरेगा ? जागरूक करने वाली रचना
सुंदर बात कही आपने ..... सिर्फ बातों से कुछ नहीं होगा....
'चिडिया घर 'को भावना शून्य निहारकर
पुनः किताब लिखने बैठ जाता हूँ
क्योकि मै एक लेखक हूँ|
...yahi aaj ki niyati hai..
man ko udelit katri badiya samyik rachna ke liya aabhar
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