बहुत दिनों से कुछ अधू रा सा लिखा रखा है आज वो ही .....
1.
हमने बाँट लिए
नदी ,पहाड़, झरने
हमने बाँट लिए
धरती के टुकड़े
आकाश के कोने
बैचे न है उड़ने को,
तुम्हारे, मेरे
करते रहे हम!
जमा कर ली हमने
नफरत ईर्ष्या रंजिश
बाँट लेते हम
स्नेह ,प्रेम, मानवता
2.
प्रभात की किरन चमकी
गाये रम्भाई ,
समूची स्रष्टि जीवंत हुई
साँझ की सुगंध महकी
गायों ने रज उड़ाई
पक्षियों ने कलरव किया ,
बाटा अपन दाना सो गये
लहरे भी सुस्ताने लगी
घर तो महके ही ,
व्यंजनों से
सडक के आजूबाजू भी
ठेलो पर धुआ महकने लगा
ओ माँ !
तुम भी आराम ले लो
रात ने अपने पैर पसार दिए है
चाँद ने तारो से दोस्ती कर ली है
अब जाने भी दो माँ......
1.
हमने बाँट लिए
नदी ,पहाड़, झरने
हमने बाँट लिए
धरती के टुकड़े
आकाश के कोने
बैचे न है उड़ने को,
तुम्हारे, मेरे
करते रहे हम!
जमा कर ली हमने
नफरत ईर्ष्या रंजिश
बाँट लेते हम
स्नेह ,प्रेम, मानवता
2.
प्रभात की किरन चमकी
गाये रम्भाई ,
समूची स्रष्टि जीवंत हुई
साँझ की सुगंध महकी
गायों ने रज उड़ाई
पक्षियों ने कलरव किया ,
बाटा अपन दाना सो गये
लहरे भी सुस्ताने लगी
घर तो महके ही ,
व्यंजनों से
सडक के आजूबाजू भी
ठेलो पर धुआ महकने लगा
ओ माँ !
तुम भी आराम ले लो
रात ने अपने पैर पसार दिए है
चाँद ने तारो से दोस्ती कर ली है
अब जाने भी दो माँ......