Thursday, March 26, 2009

रोटी

चाँद को छूने की चाहत में
तारो से भी हाथ धो बैठोगे
मझधार में जाने की चाहत में
किनारों से भी दूर हो जाओगे
हरी भरी बगिया से
फूल तोड़ने वालो
एक फूल तो
उगाकर देखो
बेतहाशा लोगो को सताने वालो
एक अदद
चेहरे पर
हँसी lakar तो देखो
हर पॉँच साल मेंभिखारी बनने वालो
मेहनत की एक रोटी
कमाकर तो देखो

Tuesday, March 24, 2009

'नदी '

रंगों को जोड़ने मे,
कई बार रंग
बदरंग हो गये
हा
रंगों का मिलान
एक नया
रंग दे गया
मुठ्ठी की रेत से
सबंध

आखो की बीच की
नाक
आपस मे
उन्हें मिलने नही देती
नदी के किनारे
कहा मिलते है ?
शायद
नदी के अंत मे

Monday, March 09, 2009

शब्दों की होली

होली का उत्साह चारो और दिखाई देने लगा है भारतीय त्योहारों का आकर्षण ही तन मन को विभोर कर देता फ़िर होली तो  है ही रंगीला उमंगो से भरा त्यौहार ,किंतु आजकल पानी की कमी के कारण पानी को बचाने के उदेश्य से सिर्फ़ गुलाल से होली खेलने की जरुरत महसूस की जा रही है और हम सब का कर्तव्य है की होली भी खेले और और इस त्यौहार की गरिमा को भी बनाये रखे |

तो आओ कुछ इस तरह होली खेले |

"शब्दों की होली"

महुआ 


'महुआ 'नही है तो क्या ?

मै हूँ ,हम है ,आप है |
पलाश 
'पलाश नही है तो क्या ?
पिचकारी है, लड़कपन है ,शरारत है|

रंग  
रंग नही है तो क्या ?
रात की रानी है ,
गुलाब की  बहार है |

पानी

"पानी" नही है तो क्या?
पास है अपने सभी तो
 निराशा की क्या बात है ?
तो आओ
लड़कपन की, पिचकारी की शरारत को
याद करके ,
रात की रानी ,गुलाब की महक से
,सारा जहा अपना बना ले |
आप हम और मै
अबके बरस इस होली में |


होली की बहुत सारी रंगीन और खुशबूदार बधाई और शुभकामनाये |

फाग

जिन्दगी जीने के लिए ,



रंग बिखेर गया श्याम



राधा को ब्रज में भटकने ,



छोड़ गया श्याम



और उसी राधा को संग ले



मंदिरों में सज गया श्याम



और उसी छलिये ने



फाग



खेलने हमको ,तुमको और सबको बुलाया है



आज




Sunday, March 08, 2009

अंतराष्ट्रीय महिला दिवस

अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर संसार की समस्त महिलाओ का हार्दिक अभिनन्दन

धात्री

वो कभी हिसाब नही मागती
तुम एक बीज डालते हो
वो अनगिनत दाने देती है
बीज भी उसी का होता है ,
और वो ही उसे उर्वरक बनती है
अपनी कोखमेंअनेक कष्ट सहकर
उस बीज को पुष्ट बनाती है
और जब अकुरित हो
अपने हाथ पाव पसारता है
तब वो खुश होती है आन्दित होकर तुम्हे पनपने देती है
किंतु तुम उसे कष्ट देकर बाहर आ जाते हो
इतराने लगते हो अपने अस्तित्व पर
पालते हो भरम अपने होने का
लोगो की भूख मिटने का
तुम बडे होकर फ़िर फ़ैल जाते हो
उसकी छाती पर
अपना हक़ जमाने
तुम हिसाब करने लगते हो
उसके आकर का ,उसके प्रकार का
भूल जाते हो उसकी उर्वरा शक्ति को ,
जो उसने तुम्हे भी दी
तुमनिस्तेज हो पुनः
उसी में विलीन हो जाते हो
न ही वो बीज को दर्द सुनाती है न ही बीजडालने वाले को
वो निरंतर देतीजाती है

Saturday, March 07, 2009

उत्सव

सुबह का कोमल स्पर्श
मन को हर्षित कर गया |
पक्षियों का कलरव ,
प्रभाती कानो में ghol गया ,
पत्तो का सरसराना ,
तन कोmuskrahat गया |
दूर नवजात शिशु का रोना ,
जीवन का संदेश दे गया |
दूध वालो की सायकिलोंकी घंटियों के स्वर ,
मुरली की तान छेड़ गये |
पडोसियों की कुकर की सीटियों ने
भूख को जगा दिया |
तो आओ प्रिये ,
chay एक प्याली के साथ
इस उत्सव को आत्मसात कर ले |