आज25 नवम्बर के दिन बाबूजी कि चौतीसवी पुण्यतिथि है ,"बाबूजी " शब्द कहते हुए एक पूरा युग बीत जाता है आँखों के सामने । ५१ साल कि छोटी सी आयु में अपने जीवन को सार्थक बनाया उन्होंने | छोटी सी उम्र में नौकरी कर परिवार ,समाज ,कि जिम्मेवारी निबाहते हुए पढाई जारी रखते हुए प्राध्यापक पद पर पहुंचकर शहर कि सांस्कृतिक ,साहित्यिक गतिविधियो को मधुरता से गतिमान बनाया, इंदौर आकाशवाणी पर जब उनकी कोई कविता या या गद्य प्रसारित होता पूरा मोहल्ला तन्मयता से उनकी मधुर वाणी कि मधुरता में डूब जाता और हफ्तो उसपर चर्चा चलती रहती । संयोग से बाई (माँ )बाबूजी कि पुण्यतिथि एक ही माह में आती है । आज भी उस दिन को भुला नहीं पाती जब उनके नहीं होने का समाचार सुना था तब मुझे अहसास हुआ था कि" पैरो तले जमीन खिसकने "का क्या अर्थ होता है ।
हम सभी भाई बहन शोभना चौरे ,साधना चौरे ,कामना बिल्लोरे ,आशीष उपाध्याय ,चेतना डोंगरे कि और से
अनेकानेक प्रणाम |
"बाबूजी" कि स्मृति में उन्ही कि एक कविता जो उन्होंने सन १९७७ में लिखी थी जो आजकि राजनीती के परिप्रेक्ष्य आज भी उतनी ही प्रासंगिक है |
एक कवि सम्मेलन में स्वर्गीय बाबूजी नारायण उपाध्याय |
इतिहास बोध
इतिहास अपने को
दोहराता है ,सही
किन्तु पात्र नहीं
और न घटनाये
केवल वृत्तियाँ
जो बदलती नहीं
कोई माँ
अब भी मांगती है
पुत्र के लिए राज्य
और राम को
अरण्य कष्ट
पर आवश्यक नहीं
भरत को
श्रध्धा हो राम पर
या उन मूल्यों पर
जिनके लिए राम
राम है सदियों से
यह भी आवश्यक नहीं
कि हर बार
सीता ही निमित्त हो
युग के निर्णायक युद्ध का
कौन जाने सत्य के लिए
भरत से लड़ना पड़े
राम को
या राम के लिए
कोल ,किरात ,निषाद
और वानर जैसे
निरीह जन को
मोह ध्रतराष्ट्र का हो
या कैकयी का
अंत सबका होता है वही
इतिहास अपने को
दोहराता है, सही ...
-नारायण उपाध्याय
-नारायण उपाध्याय