-- पानी जान लेवा ?
ढूध जान लेवा ?
घी जान लेवा ?
सब्जी जान लेवा ?
फल जान लेवा ?
मसाले जान लेवा ?
दवाई जान लेवा ?
इजेक्शन जान लेवा ?
शहरों का ट्रेफिक जानलेवा?
मौसम जान लेवा ?
बिजली की कटोती जान लेवा ?
स्कूली बसे जान लेवा ?
गर्मी जान लेवा ?
बरसात का न आना जान लेवा ?
और भी कितनी जीवनदायिनी चीजे है जो आज जान लेवा बनती जा रही है पर कम्बखत जान है की इन सबको हँसते हँसते झेल जाती है |जब जब जानलेवा चीजो पर छापा पड़ता है टनों से पकड़े नकली फल ,नकली दूध और दूसरे सामान किसको अर्पण होते है ?किसी को नहीं मालूम ?और इनके पकड़ने से बाजार में भी कोई कमी नहीं रहती ?
यत्र तत्र ठेलो पर भरपूर" जान
लेवा "फल मिलते है
भोग भी लगता है ,ठाकुर को, अभिषेक भी होता है और हम भी खाते है पीते है आराम से क्या करे ?
देखिये जान अभी भी बाकि है | मेरे लिए तो जान लेवा और ही कुछ है जैसे -
करोड़ो का गेहू हर साल गोदामों में रखे रखे सड़ जाना |
शादियों में बेहिसाब खाना बर्बाद होना |
इसी क्रम में अभी अभी एक संस्मरण पढ़ा जो अप सबके साथ बाँटना चाहती हूँ |
वो दिन
-ब्र .ध्यानाम्रत चैतन्य
"विश्व का आलिंगन "का पुराना वीडियो (१९९८ )देखते समय कुछ पुरानी यादे उभर आई |तब मै अमृत कुटीरम योजना के स्वयम सेवक दल में था |
इस योजना में गरीबो को २५ हजार आवास निशुल्क दिए जाने का लक्ष्य था |
योजना के प्रथम चरण में हार आवेदक के घर में जाकर जाँच करनी थी की कौन सुपात्र है और कौन अपात्र ?
इसके बाद सुपात्रो के बीच प्राथमिकता तय करनी थी की किसे आवास पहले वर्षो में मिलनी थी और किसे बाद के वर्षो में |निर्माण कार्य भी उसी हिसाब से होना था |
कई स्थानों पर आवेदकों के पते पर पहुचना कठिन रहा \परन्तु एक प्रसंग मेरे लिए अविस्मर्णीय बन गया |उस प्रकरण में तो स्थानीय लोग भी ये बताने में असमर्थ रहे की की आवेदिका कहाँ रहती है |
आखिर उसका आवेदक मिल ही गया जिसने हमको उस आवेदिका तक पहुँचाया|आवेदिका ७० -७५ साल की एक वृद्ध महिला थी |वह बहुत ही कमजोर थी वह एक कटहल के पेड़ के साथ ५-६ ताड़ के पत्तो की छाँव बनाकर उसके नीचे रहती थी |उसने एक मैला सा कपड़ा अपने शरीर पर लपेट रखा था \वह इतनी कमजोर और पीली थी की उसका चेहरा भावशून्य हो गया था |ऐसी लग रही थी मानो कोई पत्थर की दोनों घुटनों में अपना सर झुकाकर बैठी हो |
अपना कर्तव्य पूरा करने के लिए हमने उसके परिवार की जानकारी के लिए पूछताछ की \उसका नाम कथू था |उसके तीन बच्चे थे |५० वर्षीय बड़ा लड़का मानसिक रूप से असंतुलित था |वह किसी से बात नहीं करता था |वह भी एक कटहल के पेड़ के नीचे ताड़ के पत्तो की छाया में रहता था |काम कुछ नहीं करता था बस दिन भर पड़े रहता था |
दूसरी एक लडकी थी जिसे शादी के बाद पति ने छोड़ दिया था उसकी समस्या ये थी की वह दूसरो को दिन भर गाली बकती रहती थी कोई भी उसे सहन नहीं कर पता था \तीसरा लड़का चालीस वर्ष का था उसका भी दिमाग कुछ असंतुलित था पर बडे के मुकाबले कुछ कम वह काम करके कुछ पैसा कमाता था पर घर पर कम ही देता था |चंद्रमा की कलाओ की तरह उसका दिमाग भी बदलता रहता था |
जानकारी लेने के बाद हमने कथू से पूछा ?
क्या तुमने भोजन कर लिया ?
उसने खा -" नहीं, यहाँ खाने को है क्या ?"
-सबेरे का नाश्ता ?-नहीं
-कल खाया था ?-उसने फिर कहा- नहीं |
-कब खाया था ?
उसने कहा -पिछले सप्ताह कुछ प्याज खाए थे जो मेरा छोटा लड़का शादी की झूठन से उठाकर लाया था |
यः सुनकर हम लोगो के मन को एक गहरा आघात लगा |मैंने गरीबी के बारे में सुना था पर ऐसी दशा की कभी कल्पना भी नहीं की थी |हमारे साथ एक राजनितिक कार्य करता भी था जो लोगो के पते ढूंढने में हमारी मदद कर रहा था |उसे भी इस परिवार के बारे में कोई जानकारी नहीं थी |जबकि वह इसी सडक के किनारे थोडा आगे चलकर रहता था \
हमारे दल का एक सदस्य कुछ चावल और सब्जी खरीद कर ले ए और बुढिया माँ को पकाने को दे दिया |वह बड़ी मुश्किल से खड़ी हो पा रही थी एक बर्तन लेकर जाने लगी हमने पूछा कहा जा रही हो ?
उसने कहा -घर में पानी नहीं है करीब १०० कदम नीचे चलकर जाना होगा |रोज पानी मेरा छोटा लड़का लाया करता है |तब हम जाकर पानी लाये उसके पास चूल्हा जलाने को माचिस भी नहीं थी वो हमारे साथी के पास थी ,हमने चूल्हा जलाया और पानी गर्म करने को रखा |
इस बीच हमने कथू का नाम प्राथमिकता में सबसे ऊपर रखा और अगले आवेदक को खोजने निकल पड़े |
उस रात मै सो नहीं सका |कथू और उसके परिवार के बारे में सोच सोच का मुझे रोना आ रहा था कथू की दयनीय दशा उसकी लाचारी ,उसके बछो की दिमागी हालत !एक दिन क्या एक सप्ताह तक मुझे रोना आता रहा |जब भी मै कुछ खाने को बैठता मुझे कथू का चेहरा सामने घूम जाता |
मै सोच भी नहीं सकता था की १०० प्रतिशत साक्षर ता वाले प्रदेश केरल में किसी गरीब की ऐसी दुर्दशा हो सकती है |
बाद में कथू का मकान सबसे पहले बनाया गया स्थानीय लोगो ने भी कार्य पूरा करने में सहायता की |
इतनी निपट गरीबी मैंने इसके पूर्व नहीं देखी थी |जब अम्मा गरीबो की सहायता करने को कहती तो मै कहता था की
अच्छा विचार है \जब अम्मा कहती - अन्न पानी बर्बाद मत करो तो मुझे यः मितव्ययिता के किये दी गई सीख मालूम होती |दिल दहला देने वाले ऐसे कटु सत्य की तो मै कल्पना भी नहीं कर सकता
उस दिन मेरी आँखे खुल गई |जीवन में पहली बार मै किसी के लिए रोया था -अम्मा ने मेरे करुणा नेत्र खोल दिए थे |
-ॐ -
साभार
"मात्र वाणी "
मासिक पत्रिका
माता अमृतानंदमायी मिशन ट्रस्ट
(पोस्ट )कोल्लम ६९०५२५ ,केरल
इस योजना में गरीबो को २५ हजार आवास निशुल्क दिए जाने का लक्ष्य था |
योजना के प्रथम चरण में हार आवेदक के घर में जाकर जाँच करनी थी की कौन सुपात्र है और कौन अपात्र ?
इसके बाद सुपात्रो के बीच प्राथमिकता तय करनी थी की किसे आवास पहले वर्षो में मिलनी थी और किसे बाद के वर्षो में |निर्माण कार्य भी उसी हिसाब से होना था |
कई स्थानों पर आवेदकों के पते पर पहुचना कठिन रहा \परन्तु एक प्रसंग मेरे लिए अविस्मर्णीय बन गया |उस प्रकरण में तो स्थानीय लोग भी ये बताने में असमर्थ रहे की की आवेदिका कहाँ रहती है |
आखिर उसका आवेदक मिल ही गया जिसने हमको उस आवेदिका तक पहुँचाया|आवेदिका ७० -७५ साल की एक वृद्ध महिला थी |वह बहुत ही कमजोर थी वह एक कटहल के पेड़ के साथ ५-६ ताड़ के पत्तो की छाँव बनाकर उसके नीचे रहती थी |उसने एक मैला सा कपड़ा अपने शरीर पर लपेट रखा था \वह इतनी कमजोर और पीली थी की उसका चेहरा भावशून्य हो गया था |ऐसी लग रही थी मानो कोई पत्थर की दोनों घुटनों में अपना सर झुकाकर बैठी हो |
अपना कर्तव्य पूरा करने के लिए हमने उसके परिवार की जानकारी के लिए पूछताछ की \उसका नाम कथू था |उसके तीन बच्चे थे |५० वर्षीय बड़ा लड़का मानसिक रूप से असंतुलित था |वह किसी से बात नहीं करता था |वह भी एक कटहल के पेड़ के नीचे ताड़ के पत्तो की छाया में रहता था |काम कुछ नहीं करता था बस दिन भर पड़े रहता था |
दूसरी एक लडकी थी जिसे शादी के बाद पति ने छोड़ दिया था उसकी समस्या ये थी की वह दूसरो को दिन भर गाली बकती रहती थी कोई भी उसे सहन नहीं कर पता था \तीसरा लड़का चालीस वर्ष का था उसका भी दिमाग कुछ असंतुलित था पर बडे के मुकाबले कुछ कम वह काम करके कुछ पैसा कमाता था पर घर पर कम ही देता था |चंद्रमा की कलाओ की तरह उसका दिमाग भी बदलता रहता था |
जानकारी लेने के बाद हमने कथू से पूछा ?
क्या तुमने भोजन कर लिया ?
उसने खा -" नहीं, यहाँ खाने को है क्या ?"
-सबेरे का नाश्ता ?-नहीं
-कल खाया था ?-उसने फिर कहा- नहीं |
-कब खाया था ?
उसने कहा -पिछले सप्ताह कुछ प्याज खाए थे जो मेरा छोटा लड़का शादी की झूठन से उठाकर लाया था |
यः सुनकर हम लोगो के मन को एक गहरा आघात लगा |मैंने गरीबी के बारे में सुना था पर ऐसी दशा की कभी कल्पना भी नहीं की थी |हमारे साथ एक राजनितिक कार्य करता भी था जो लोगो के पते ढूंढने में हमारी मदद कर रहा था |उसे भी इस परिवार के बारे में कोई जानकारी नहीं थी |जबकि वह इसी सडक के किनारे थोडा आगे चलकर रहता था \
हमारे दल का एक सदस्य कुछ चावल और सब्जी खरीद कर ले ए और बुढिया माँ को पकाने को दे दिया |वह बड़ी मुश्किल से खड़ी हो पा रही थी एक बर्तन लेकर जाने लगी हमने पूछा कहा जा रही हो ?
उसने कहा -घर में पानी नहीं है करीब १०० कदम नीचे चलकर जाना होगा |रोज पानी मेरा छोटा लड़का लाया करता है |तब हम जाकर पानी लाये उसके पास चूल्हा जलाने को माचिस भी नहीं थी वो हमारे साथी के पास थी ,हमने चूल्हा जलाया और पानी गर्म करने को रखा |
इस बीच हमने कथू का नाम प्राथमिकता में सबसे ऊपर रखा और अगले आवेदक को खोजने निकल पड़े |
उस रात मै सो नहीं सका |कथू और उसके परिवार के बारे में सोच सोच का मुझे रोना आ रहा था कथू की दयनीय दशा उसकी लाचारी ,उसके बछो की दिमागी हालत !एक दिन क्या एक सप्ताह तक मुझे रोना आता रहा |जब भी मै कुछ खाने को बैठता मुझे कथू का चेहरा सामने घूम जाता |
मै सोच भी नहीं सकता था की १०० प्रतिशत साक्षर ता वाले प्रदेश केरल में किसी गरीब की ऐसी दुर्दशा हो सकती है |
बाद में कथू का मकान सबसे पहले बनाया गया स्थानीय लोगो ने भी कार्य पूरा करने में सहायता की |
इतनी निपट गरीबी मैंने इसके पूर्व नहीं देखी थी |जब अम्मा गरीबो की सहायता करने को कहती तो मै कहता था की
अच्छा विचार है \जब अम्मा कहती - अन्न पानी बर्बाद मत करो तो मुझे यः मितव्ययिता के किये दी गई सीख मालूम होती |दिल दहला देने वाले ऐसे कटु सत्य की तो मै कल्पना भी नहीं कर सकता
उस दिन मेरी आँखे खुल गई |जीवन में पहली बार मै किसी के लिए रोया था -अम्मा ने मेरे करुणा नेत्र खोल दिए थे |
-ॐ -
साभार
"मात्र वाणी "
मासिक पत्रिका
माता अमृतानंदमायी मिशन ट्रस्ट
(पोस्ट )कोल्लम ६९०५२५ ,केरल