Sunday, August 03, 2025

बरसाती नदी

"किताबों की खिड़की "
ये कैसी बयार चली है?
की किसानों की किसानी 
लापता सी हो गईं है।
सुनते है रोजगार नहीं है 
क्योंकि  
मनपसंद नौकरी की पड़ी है।
किताबों के  गाँव किताबों 
में  ही रह गए  है,
अब गुड़ मॉर्निंग ने 
प्रभाती की जगह ले ली है।
गोधूलि बेला रील की 
हमसफ़र हो गईं है।
बिजली के ढ़ोल, नगाड़े
लील गए 
मंदिर की सुरीली 
घंटियों को,
बिखरे थे नेकी के चटक रंग 
लालच की आंधी में 
धुंधले हो गए है।
यादों में थी कलकल बहती नदी 
अब 
बरसात में,
 बरसाती नदी भी 
सूखी हो चली है।