Monday, July 21, 2008

बादलो की सैर




केरल यात्रा के दोरान प्रकर्ति का अतिशय सुंदर रूप देखा ,उसी को शब्दों में ढलने की एक छोटीसी कोशिश की है
रोम रोम पुलकित हुआ जब बादलो से रूबरू हुए
हर दिल हर साँस हमारी खुशबु हुए
आज बादलो का मेला है
बादलो ने ही खेल खेला है





आसमान से उतरकर मेरे आँगन में ,बसेरा डाला है
आज वो रुई का रूप लेकर आए है
कभी पेडो के साथ ,कभी पोंधो के साथ
आँख मिचोली करते मेरे पास मचले है
मचलते हुए मुझे आगोश में लेकर
अपनी कोमलता का अहसास कराकर
मुझसे विदा लेकर
उपर से उपर उठते हुए
पुनः आसमान में विलीन हो गये
और धुप के एक टुकड़े ने
उन्हें और चमकीला बना दिया है

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