Tuesday, September 16, 2008

विश्वास

मेरे जेहन में चोकोर पत्थर ,
धागे से बंधा हुआ
मानो मेरे अनगिनत प्रश्नों का उत्तर
रिक्तता और शून्य में खोजता अन्तर
उनींदी आँखों की सोच
खुली आँखों का यथार्थ
ढूंढ़ता एक मकसद ,
एक आयाम
ये मेले ये त्यौहार
न रहे तुम्हारे ,
न रहे मेरे पास
ओपचारिकता के बंधन
टूटते से नज़र आते आज
और उस पत्थर के चोकोरपंन में
दबते से मेरे अहसास
अपनों से दूर होने की सिर्फ़ ,
खुशबु है पास
नजदीकियों ने विश्वासों को तोडा है
अपनों ने फ़िर
ओप्चारिक्ताओ को ओढा है

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