Tuesday, April 27, 2010

"अयोध्या "





अयोध्या के बारे में" रामचरित मानस" के आलावा बहुत कुछ लिखा जा चुकाहै |
अपनी अल्प बुद्धि से जो कुछ समझ आया आप सबसे बाँट रही हूँ |






देखने गये थे
रामलला
दर्शन हुए
कुछ इन अहसासों के
उजाड़
नगरी ,सूनी अयोध्या



सूनी रसोई ,उजाड़ सीता महल
पवन पुत्र
पवन कि अपेक्षा
धरती पर
आसरा लिए
तुलसी कि अयोध्या
क्या सिर्फ रामचरित मानस में ही है ?
अयोध्या में दर्शन हुए तो सिर्फ बाजार
और
बाजार




नाव
कभी चलती थी
सरयू नदी में?

18 टिप्पणियाँ:

Amrendra Nath Tripathi said...

यादें ताज़ा हो गयीं .. वहीं का हूँ इसलिए ..
चित्रों से गुजरना अच्छा लगा .. दीवारें सीली - सीली हैं पर एक
आदिम सी चमक का आभास जरूर होता है ..
बाजार सड़कों के किनारे खूब फैले हैं जिनपर खरीदनेवाले कम ही
दीखते हैं , सोचता हूँ कैसे ये लोग इन दुकानों से जीवन यापन करते होंगे ..
.
गुप्तार-घाट जाना नहीं हुआ क्या ? वहाँ तो नाव की अच्छी सवारी भी मिलती !
चित्रों में फिर रम रहा हूँ .. आभार !

Apanatva said...

aap aajkal blog par kum aarahee hai...
swasthy to theek hai na......
shubhkamnae......

Apanatva said...

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Apanatva said...

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अजय कुमार said...

जी हां बहुत कुछ बदल गया लगता है

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आपके ये एहसास अयोध्या के सूनेपन को बता रहे हैं...कभी अवसर नहीं मिला अयोध्या देखने का....नाव भी चलती थी सरयू नदी में? ये प्रश्न मन को विचलित कर गया...

राज भाटिय़ा said...

आज सभी धार्मिक जगहो का यही हाल है, वो स्थान धार्मिक कम ओर लुटेरो का स्थान ज्यादा लगते है, धन्यवाद इस भाव भरी कविता के लिये

sonal said...

जब पहली बार अयोध्या गई थी भौचक्की रह गई थी,ब्रज धाम के विपरीत बेहद सन्नाटा ...राम लला को फटी बरसाती में देख कर दिल भर आया

प्रवीण पाण्डेय said...

कई वर्ष पहले गया था । भाव यही थे, कविता में आपने पिरो दिया ।

Alpana Verma said...

बहुत दिनों बाद ख़ामोशी टूटी आप के ब्लॉग की..
अयोध्या नगरी का हाल देखा ,मन क्षुब्ध हुआ .सालों पहले यह स्थान देखा था,,अब फिर याद कर रही हूँ इन चित्रों के माध्यम से.

रचना दीक्षित said...

अब अयोध्या नगरी राजनीति की नगरी जो हो गयी है!!!!. न तो राम लाला को ही सुहाती होगी न ही न ही सरयू को. जो कुछ पहले कभी था, वो सब कुछ राजनीतिक लुटेरे ले गए .
आभार

hempandey said...

अयोध्या की इस दशा के लिए राजनीति जिम्मेदार है.

नीरज गोस्वामी said...

अब अयोध्या का वो वैभव कहाँ...सबका बाजारीकरण हो गया है...इस ऐतिहासिक नगरी की ये दशा देख दुःख हुआ...
नीरज

rashmi ravija said...

अयोध्या तो हमारी कल्पनाओं में ही बसा हुआ था...सच्चाई देख ,बड़ी ठेस लगी...पर ऐसा ही कुछ नालंदा को देखकर भी हुआ था...विश्व के पहले विश्वविद्यालय वाला शहर एक कस्बे जैसा है...पर शायद हर शहर की भी एक उम्र होती है...

Anita kumar said...

शोभना जी आप के जरिए हमें भी अयोध्या के दर्शन हो गये, आज तक कभी देखी नहीं।
आप मेरे ब्लोग पर आयीं धन्यवाद्। आप का ई-मेल आई डी आप के प्रोफ़ाइल में नहीं मिला इस लिए यहां आभार व्यक्त कर रही हूँ। स्नेह बनाये रखिएगा

SANSKRITJAGAT said...

जब श्री राम चाहेंगे तो सब फिरसे अपने आप ही ठीक हो जायेगा।

रश्मि प्रभा... said...

दिन बदले, यूं ही सब बेहतर हो

Anonymous said...

Han ji