Tuesday, August 10, 2010

नदी और चाँद









पूनम का चाँद
नदी के तल में ,
अपना प्रतिबिम्ब देखकर
गर्वित हो गया |
सितारों के झुरमुट के बीच
उसने
अपनी रौशनी और तेज कर दी ,
नदी थी शांत ,
दिन भर की थकी हुई ,
चाँद की भावनाओ से अनजान,
चाँद अपने में ही ,
फूला नही समा रहा था ,
वो अनजान था अब तक ?
वो हैरान है अब?
क्या नदी ने सचमुच
मुझे अपने
ह्रदय में जगह दी है ?
वो मुग्ध हो रहा था ,
अपनी उपलब्धी पर
और अपनी किरणों से
नदी को आकर्षित ,
करने की कोशिश कर रहा था ,
क्योकि उसके पास समय
सिर्फ़ एक दिन |
किंतु
नदी थी चिंता में
भोर होने को है ,
नाविक पास आते जा रहे है
गाये रम्भाती रही है
पनिहारिनों
की चुडियो की आवाज
कानो
में रस घोल रही है,

उसने अपने इन
चिर स्थायी साथियों से कहा ,
आओ तुम्हारे बिना मेरा जीवन कहा ?
नदी ने अपनी लहरे उचकाकर ,
तिरछे होकर चाँद को
पल भर देखा ,
चाँद उसके ह्रदय से
ओझल हो गया |

22 टिप्पणियाँ:

मनोज कुमार said...

यह कविता सिर्फ सरोवर-नदी-सागर, फूल-पत्ते-वृक्ष आसमान की चादर पर टंके चांद-सूरज-तारे का लुभावन संसार ही नहीं, वरन जीवन की हमारी बहुत सी जानी पहचानी, अति साधारण चीजों का संसार भी है। यह कविता उदात्ता को ही नहीं साधारण को भी ग्रहण करती दिखती है।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत सुन्दर भाव हैं कविता के ....घमंड कहीं नहीं टिकता ....नदी के माध्यम से आपने सहज सरल साथियों को महत्त्व दिया है ...जो कुछ देने में गर्व करे उससे प्रीत कैसी ? बहुत अच्छी लगी रचना ..

Unknown said...

दी बहुत दिनों से आप का ब्लॉग टटोलता रहा हूँ
जब भी आपको पढता हूँ
मन में हिलोरें उठने लगती है
कितनी प्यारी रचना लिखी है
आप से ही प्रेर्णित हो कर मैंने भी ब्लॉग बनाया था और
आज उसमे भी ढेर सारी कविताये हो गई हैं सब आप का दिया हुआ है
बस हमेसा के लिए आपका साथ सानिध्य पाना चाहता हूँ .....

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

बहुत सुन्दर भाव हैं कविता के ....

वन्दना अवस्थी दुबे said...

बहुत सुन्दर कविता है शोभना जी.

Alpana Verma said...

क्या चाँद अभिमानी था इसलिए नदी ने उसे दूर कर दिया ??या यह तो सुबह से शाम -शाम से सुबह होने की तय नियति थी इसलिए उन्हें दूर होना पड़ा...या फ़िर चाँद अपने भ्रम में जीता रहा था अब तक ..इस कविता के कितने ही अर्थ समझ आ रहे हैं.प्रकृति के माध्यम से भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति .

प्रवीण पाण्डेय said...

मन की शान्ति में ही चाँद की सुन्दरता का वास है। दैनिक जीवन के हिचकोले चाँद को भुला देते हैं।

kshama said...

उसने अपने इन
चिर स्थायी साथियों से कहा ,
आओ तुम्हारे बिना मेरा जीवन कहा ?
Na unka jeevan nadi ke bina,na nadee kaa jeewan unke bina! Behad sundar rachana!

नीरज गोस्वामी said...

कमाल किया है आपने...शब्दों के माधुर्य और जादू से बांध लिया हम जैसे पाठकों को...बधाई..
नीरज

शोभना चौरे said...

आप सभी को हार्दिक धन्यवाद |
आप सबकी सुन्दर टिप्पणियों और गहरी व्याख्याओ ने इस कविता को कई नये अर्थ दे दिए है और मुझे असीम ख़ुशी |

Manoj K said...

जीवन के रिश्तों को परिभाषित करती एक रचना. सीधे सादे शब्दों में जीवन की सच्चाई.

अद्भुत.

सादर
मनोज खत्री

shikha varshney said...

बेहद खूबसूरत भावो से रची कविता ...साथी वही जो निरंतर साथ दें पल भर की प्रीत किस काम की ...बहुत सारगर्भित रचना.

vandana gupta said...

प्रीत का एक नया अन्दाज़ पेश किया है……………नदी और चाँद के माध्यम से स्त्री और पुरुष के मान और अहम दोनो को बखूबी चित्रित किया है।

रचना दीक्षित said...

उसने अपने इन
चिर स्थायी साथियों से कहा ,
आओ तुम्हारे बिना मेरा जीवन कहा ?
नदी ने अपनी लहरे उचकाकर ,
तिरछे होकर चाँद को
पल भर देखा ,
चाँद उसके ह्रदय से
ओझल हो गया |

समय और परिस्थितियां कभी भी किसी को अजनबी बना देती हैं. एक खूबसूरत एहसास से परिपूर्ण सुंदर रचना और साथ ही बिम्बों का बेहतरीन प्रयोग, बहुत बधाई!

Aruna Kapoor said...

नदी थी चिंता में
भोर होने को है ,
नाविक पास आते जा रहे है
गाये रम्भाती आ रही है
पनिहारिनों की चुडियो की आवाज
कानो में रस घोल रही है,

...कल्पना की तरंगे मन को हलके से छू रही है!...सुंदर अहसास!...सुंदर रचना!

gaurtalab said...

bahut sundar!

Anonymous said...

hello


great forum lots of lovely people just what i need


hopefully this is just what im looking for, looks like i have a lot to read.

ghughutibasuti said...

वाह, गजब की कल्पना है!
घुघूती बासूती

VIVEK VK JAIN said...

जीवन के रिश्तों को परिभाषित करती एक रचना.
khoobsurat bhaav! sunder shabdo me chhupa jivan rahasya!

दिगम्बर नासवा said...

सुंदर भाव है रचना में .... एक दिन को ही सही पर चाँद पूरेपन पर इतराता तो है ....

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

मंगलवार 17 अगस्त को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है .कृपया वहाँ आ कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ....आपका इंतज़ार रहेगा ..आपकी अभिव्यक्ति ही हमारी प्रेरणा है ... आभार

http://charchamanch.blogspot.com/

M VERMA said...

डूबी हुई भावनाएँ
उतराते हुए एहसास
और फिर यह नदी ..
यह तो है आसपास

बहुत सुन्दर ..