Friday, May 06, 2011

"पर उपदेश कुशल बहुतेरे "

आजकल हर व्यक्ति उपदेशात्मक बाते करने लगा है |दिन रात अध्यात्मिक ?चैनलों का प्रभाव शायद जीवन पर गहरा असर डाल रहा है बोलने में हाँ ?आचरण में तो शून्य प्रतिशत ही है |

"दर्द की शामत "

कौनसे दर्द की कहू ?
मेरे हर दर्द का
एक ही जवाब होता है
तुम्हारे पास
तुम्हारे अपने पाले हुए दर्द है |

"सुख की नींद "

क्या कमी है
तुमको घरमे ,
कभी देखा है?
तुमने ?
फुटपाथ पर कैसी
"सुख की नीद "सोते है
मछरदानी लगाकर लोग ?

14 टिप्पणियाँ:

डॉ. मोनिका शर्मा said...

क्या कमी है
तुमको घरमे ,
कभी देखा है?
तुमने ?
फुटपाथ पर कैसी
"सुख की नीद "सोते है
मछरदानी लगाकर लोग ?

हूँ ...ज़रूरतें भले ही कम हैं पर इच्छाएं बहुत ज्यादा .......

वाणी गीत said...

बिलकुल सहमत हूँ ...उदेशकों को यह नहीं दिखता कि उपदेश देने की बजाय कर्म ज्यादा बोलते हैं ...तभी तो उपदेशकों की बढती फौज के बावजूद समाज और देश में स्थितियां बद से बदतर हुई हैं !
असरदार क्षणिकाएं !

anshumala said...

कर्म करना मुश्किल जो है उपदेश देना आसन है सो सब यही करते है | अपने जीवन में उसे लागु कर कौन सबके सामने उदाहरन रखता है शायद कोई भी नहीं |

प्रवीण पाण्डेय said...

दर्द सब पाले होते हैं, हटाने की क्षमता घटती जाती है।

Satish Saxena said...

हम भी सामने बैठकर उपदेश सुन रहे हैं और समझाने का प्रयत्न भी कर रहे हैं !
शुभकामनायें आपको !

rashmi ravija said...

"एक ही जवाब होता है
तुम्हारे पास
तुम्हारे अपने पाले हुए दर्द है |"

सही है...दूसरों को उपदेश देना बहुत आसान है...जब खुद पर गुजरती है...तब ये उपदेश ,याद आने चाहिए
बहुत ही सार्थक क्षणिकाएं

Amrendra Nath Tripathi said...

सटीक बातें! अनुकरणीय ! आभार..!

kshama said...

Sab kuchh sahee hote hue bhee man kayee baar udaas ho hee jata hai!

shikha varshney said...

दुनिया एं सबसे आसान है दूसरों को उपदेश देना...सो यही करते हैं लोग.

Manoj K said...

बोलने और करने में बहुत फर्क होता है. उपदेश देने से पहले अगर कहने वाला यह सोच ले तो शायद ...

ZEAL said...

एक ही जवाब होता है
तुम्हारे पास
तुम्हारे अपने पाले हुए दर्द है ...

अपना दुःख तो उसी से कहना चाहिए जो हमें समझ सके , वरना पाले रहना ही बेहतर। उपदेश देने वालों से कहने का कोई लाभ नहीं। उदासी बढ़ ही जाती है।

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दिगम्बर नासवा said...

जीवन के यथार्थ से सामना करा रही हैं आपकी क्षणिकाएँ ... बहुत लाजवाब ...

Sawai Singh Rajpurohit said...

"सुख की नींद "

क्या कमी है
तुमको घरमे ,
कभी देखा है?
तुमने ?
फुटपाथ पर कैसी
"सुख की नीद "सोते है
मछरदानी लगाकर लोग ?

बहुत खूब और संदेश भी सार्थक है

Aruna Kapoor said...

धन्यवाद शोभना जी!....आप ने कम शब्दों मे बहुत कुछ कह डाला है, जो जीवन का शाश्वत सत्य है!